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जट वने हैं लीजेंड

लीजेंड बने हैं वीर तुम्हारे तुम कब जट्टो जागोगे । वो तो होगये अमर बलिदानी तुमने रूल दी उनकी कहानी । उठो जागो कॉम के वीरो जानो अपने इतिहाश ने । कर दो जीबित दुनिया में अपनी कॉम के इतिहाश ने । मूर्खो में खोए लीजेंडा ने ।। #पिलानिया जोड़े हाथ तुम्हारे मेरी कॉम के वीरो जागो तुम सारे ।। तुमसे ही है मेरा मान मेरी कॉम का सम्मान ।। आत्मा टटोल जट्टा अपने पुरखो ने पहचान जट्टा जय जट्टा कुलदीप पिलानिया बाँहपुरिया बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

राजस्थान के जाटो का इतिहाश व् उनका आपस में बैर

राजस्थान के जाटो का इतिहाश व् उनका आपस में बैर  आपस में लड़ो मत बिखर'' जाओगे मौत आने से पहले अपनी ही नज़र में गिर जाओगे ★ 💪💪💪💪💪💪💪💪 प्रिय जाट बन्धुओ आप से एक निवेदन है जाटो में प्रचलित कुछ गलत धारणा जो आज भी बुजुर्ग लोगो में प्रचलित है जैसे की राजस्थान के जाटों में चार तड है जो बिलकुल गलत बात है जो कुछ पंडो दुआर चलाई गयी थी जो पूर्ण रूप से क्षेत्र पर आधारित थी । जाटों के लिए यह कहावत भी तो है ''अपनों को छोड़ गैरो को गले लगते है '' ''यह बात बिलकुल सही है जाट को जाट मारे या करतार (भगवान )'' जाटो की पंडो ने चार तड बताई है जो की सिनसिनवार ,जोहिया , धोलिया ,आणना , है जबकि पहले तीन तो गोत्र है जो की एक राजवंश गोत्र है भरतपुर नरेश सिनसिनवार है तो वीर तॆजा जी धोलिया गोत्र है और जोहिया जाट पंजाब पाकिस्तान में राजवंश था । इस तड का उदेश केवल और केवल जाटो की ताकत को तोडना था । पंडो के अनुसार यह तड आपस में शादी नही कर सकती है लकिन लड़ सकती है धोलिया जाट तड टोंक अजमेर क्षेत्र में बताई जबकि सिनसिनवार भरतपुर ,करोली में तो जोहिया बीकानेर में

अमर शहीद उधम सिंह जी को शत शत नमन्

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे। उधमसिंह १३ अप्रैल १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थ

जट राजा बदन सिंह

राजा बदनसिंह Badan Singh (बदन सिंह) (1722 – 1756) was the formal founder of the princely state of Bharatpur (भरतपुर). He was nephew of Churaman. After the death of Churaman on 22 September 1721 there were family disputes between Badan Singh and Mohkam Singh, son of Churaman. Badan Singh aligned with Jai Singh of Jaipur to avoid the anger of Mohkam Singh. In this family feud Jai Singh supported Badan Singh. राजा बदन सिंह के 26 लड़के थे जिनमे सबसे बड़े महाराजा सूरजमल थे जो जट अफलातून कहलाए ।। राजा बदन सिंह ठाकुर देशराज लिखते हैं कि सवाई महाराज जयसिंह जी से इनका बड़ा मेल-जोल था। अधिकांश समय उनका जयपुर ही में बीतता था। जयपुर में उनके नाम से एक स्थान बदनपुरा भी है। संवत् 1775 में यह डीग के मालिक बने। डीग में उन्होंने अच्छी-अच्छी इमारतें बनवाई और कुम्हेर में सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया। राजा बदनसिंह लड़ाई-झगड़े की अपेक्षा राज्य-व्यवस्था में अधिक संलग्न रहे। 1.हिस्ट्री ऑफ जाट्स, कालिकारंजन कानूनगो कृत जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-639 फिर भी उन्होंने अठारह लाख की आमदनी

जाटों की सिंधुघाटी सभ्यता

आज से 2500 ई.पू. जाटों ने सिंधुघाटी की सभ्यता का निर्माण चार्वाक दर्शन (भौतिकवादी दर्शन) के आधार पर किया था । उस समय जाट जाति नाग जाति कहलाती थी । सम्राट तक्षक इस जाति के सबसे बड़े चौधरी थे और नांगलोई (दिल्ली), तक्षशिला (पाकिस्तान) तथा नागौर (राजस्थान) नाग जाति के केन्द्रीय स्थान थे । नागो ने ही नागरी लिपि को विकसित किया था जो आगे चलकर देवनागरी कहलाई । इस सिंधु घाटी की सभ्यता के खिलाफ ब्राह्मणों ने षड्यन्त्र रचे तथा सम्राट तक्षक की हत्या करके एवं चार्वाक दर्शन को धीरे-धीरे खत्म करके, इस महान् सभ्यता का पतन कर दिया । नोट करें तक्षक और सिंधु गोत्र आज भी जाटों के ही गोत्र हैं । सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के बाद ब्राह्मणों ने वैदिक युग (1500 ई.पू. से 600 ई.पू.) की शुरुआत की । इस वैदिक युग में वेदों की रचना हुई, पाखंडों को बढ़ावा मिला तथा जन्म आधारित जाति व्यवस्था की शुरुआत हुई । नाग (जाट) इस वैदिक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करते रहे । आगे चलकर इस संघर्ष में से महात्मा बुद्ध की ब्राह्मण विरोधी मूवमेंट खड़ी हुई । शाक्य वंशीय नागमुनि महात्मा बुद्ध ने सर्वाधिक क्रान्तिकारी नागों को नये नाम ‘

जटों का निबास स्थान(देश)

जट लोग निम्नलिखित देशों में निवास करते हैं:- 1. भारत, 2- पाकिस्तान, 3 - चीन, 4 - अफगानिस्तान, 5 - तुर्की, 6-अजबेकिस्तान, 7- कजाकिस्तान, 8- ईरान, 9- ईराक, 10- ग्रीस, 11-मिश्र, 12- अर्मेनिया, 13- जोर्जिया, 14-सऊदी अरब, 15- लिबिया, 16- अलजिरिया, 17- मराको, 18- रोमानिया, 19- स्वीडन, 20- जर्मनी, 21- इटली, 22- इंग्लैण्ड, 23- तिब्बत, 24- साईबेरिया, 25- बेलारूस। (इसके अतिरिक्त यूरोप के कई और देश भी हैं।) भाषा व उच्चारण भेद के कारण इनको अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। जैसे कि जट्ट - जाट - जत - जोत - गोत - गोथ - गाथ - जिट - जटी आदि आदि।यह उच्चारण के भेद के कारण है। उदाहरण के लिए हिन्दी के शब्द ‘कहां’ को हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र में ‘कठै’, रोहतक क्षेत्र में ‘कड़ै़’, भिवानी क्षेत्र में ‘कित’ हिसार क्षेत्र में ‘कड़ियां’ बोला जाता है। इसी शब्द को पंजाब में ‘किथै’ तो डोगरी में‘ कुत्थे’ बोलते हैं। हम हरयाणा में चारपाई को खाट कहते हैं तो पंजाब और जम्मू क्षेत्र में ‘खट्ट’ बोला जाता है। हम जाट कहते हैं तो पंजाब, हिमाचल व जम्मू क्षेत्र में इसे जट्ट बोला जाता है। हमारे इसी शब्द को शेष उत्तर भारत में

ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी - 1962

ब्रिगेडियर होशियारसिंह (राठी गोत्री जाट) का 62वां ब्रिगेड शैला (Tsela) नामक स्थान पर तैनात था जो चीन को हर तरह से कारगर जवाब देने में सक्षम था। इसी बीच शायद लज्जा के कारण (वैसे नेहरू जी में लज्जा थी तो नहीं) नेहरू जी ने पंडित कौल साहब को फिर से मौर्चे पर धकेल दिया। जब ब्रिगेडियर होशियारसिंह तथा उसके मातहत कमांडर व सैनिक लड़ाई के लिए तैयार थे तो अचानक 17 नवम्बर की रात का को उनका आदेश मिला कि “वह अपना स्थान छोड़कर डिविजनल मुख्यालय दोरेरांग जोंग में पहुंचें” क्योंकि कौर कमांडर पंडित कौल तथा डिविजनल कमांडर मे. जनरल ए.एस. पठानिया (हिन्दू राजपूत डोगरा) को अपने-अपने मुख्यालयों की सुरक्षा की पड़ी थी। क्योंकि दोनों ही जनरल चीन से बुरी तरह भयभीत हो गये थे और वे ब्रिगेडियर होशियारसिंह की सुरक्षा पाकर अपने को सुरक्षित करने में लगे थे। वीर ब्रिगेडियर होशियारसिंह एक आदर्श कमांडर के तौर पर आदेश का पालन करते हुये अपने साथ दो कम्पनी लेकर रात में चलपड़े और दूसरे दिन प्रातः रास्ते में चीन के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुये। शुरु में तो ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी साहब पर लांछन लगे कि वे स्वयं लड़

जट सांसद

वर्तमान 16 वी लोक सभा के जाट सांसद 1_अजमेर (राजस्थान)------सांव­­रमल जाट (लाम्बा जाट) 2_सीकर (राजस्थान)-------सुम­­ेंदानंद शास्त्री (ढाका जाट) 3_बाड़मेर -जैसलमेर(राजस्थान)--­­---कर्नल सोनाराम जाट(पाबडा जाट) 4_चुरू (राजस्थान)------राहु­­ल (कस्वां /कसवा जाट) 5_झुंझनू (राजस्थान)-----संतोष­­ अहलावत(नेतड़ कि बेटी अहलावत की बहु) 6_नागौर (राजस्थान)----सी .आर चौधरी (छरंग जाट) 7_झालावाड़ (राजस्थान)-----धौलपु­­र युवराज दुष्यंत सिंह राणा (बमरौलिया जाट) 8_अमृतसर (पंजाब)-----पटियाला महाराज कैप्टेन अमरिंदर सिंह (सिद्धू जाट) महाराज अमरिंदर सिंह वर्तमान अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। 9_आनंदपुर साहिब (पंजाब)----प्रेमसिंह­­ चंदूमाजरा () 10_भटिण्डा (पंजाब)----- हरसिमरत कौर बादल (दिल्लन/ढिल्लों जाट) 11_लुधियाना (पंजाब)-----रवनीत सिंह बिट्टू (झज्ज जाट) 12_खण्डुर साहिब(पंजाब)----रणजी­­त सिंह ब्रह्मपुरा 13_संगरूर -----भगवंत मान (मान जाट) 15_बागपत (यूपी)-----डॉ सत्यपाल सिंह (तोमर/तँवर जाट) 16_बिजनोर (यूपी)-----कुंवर भारतेन्द्र सिंह (काकरान/ठकुरेला जाट) 17_मुज़फ्

जट अफलातून - महाराजा सूरजमल

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जट्ट वीरो आज एक ऐसी कहानी आपके बीच ला रहा हुँ जिसके कारण लोहागढ नरेश महाराजा सूरजमल जट अफलातून कहलाए… जब दिल्ली पर मुगल बादशाह अहमदशाह का राज था बादशाह के दरबार मेँ एक पंडित रहता था पंडित कि पत्नी रोज पंडित के लिए खाना ले जाती थी । एक दिन पंडित कि बेटी हरजोत अपने पिता के लिए खाना लेके गई । हरजोत जब वापस घर चली गई तो बादशाह ने पंडित को पूछा तेरी बेटी है क्या ये । पंडित बोला हाँ, तो बादशाह बोला तुने अब तक ये बात हमसे छुपाई कोई बात नि पर सुन हरजोत हमारे दिल को छू गई मै उसे अपनी बेगम बनाना चाहता हूँ । पंडित बोला हुजूर दया करो ऐसा मत सोचो आप कि बेटी है बादशाह बोला बेटी थी पंडित पर अब कुछ अलग है पंडित गिडगिडाने लगा और बादशाह के पैरोँ मेँ गिर गया लेकिन पत्थर दिल मेँ दया कहाँ बादशाह बोला सुन सात दिन मेँ हरजोत का डोला ले लिया जाएगा… पंडित रात को घर पहुंचा और चिंता कि लकीरें माथे पर लेके बैठ गया तो पंडितानी और बेटी ने पूछा तो पंडित कि आँखोँ से आंसुओँ कि धार तो हरदौल बोली पिताजी जो हुआ है बताओ तो पंडित ने सारा दुखडा बेटी को रो दिया बेटी बोली पिताजी मेँ धर्म ना बदलूंगी चाह

जट गाथा

झूठ नहीं थे जाट लुटेरे जो तारीख के पाठां मैं, लूटण खातिर ताकत चाहिए जो थी बस जाटां मैं.......... सोमनाथ के मन्दिर का सब धरा ढका उघाड़ लेग्या, मोहम्मद गजनी लूट मचा कै सारा सोदा पाड़ लेग्या । हीरे पन्ने कणी-मणी चन्दन के किवाड़ लेग्या, सब सामान लाद के चाल्या सत्राह सौ ऊंट लिए, कोए भी नां बोल सका सबके गोडे टूट लिए । रस्ते मैं सिंध के जाटां नै ज्यादातर धन लूट लिए । मोहम्मद गजनी आया था एक जाटां की आँटां मैं.....॥1॥ व्रज का योद्धा जाट गोकुला औरंगजेब नै मार दिया, सीकरी का महल किला जाटां नै उजाड़ दिया। ताजमहल मैं लूट मचाई सारा गुस्सा तार दिया, राजाराम जाट नै लड़कै दिल्ली की गद्दी हिला दई। औरंगजेब की मरोड़ तोड़ कै माटी के म्हां मिला दई। कब्र खोद अकबर की हड्डी चिता बणा कै जला दई। एक चूड़ामण नै मुगलां की लई खाल तार सांटां तैं....॥2॥ भरतपुर के सूरजमल को मुगलां नै धोखे तैं मारा, उसका बेटा होया जवाहरसिंह लालकिले पै जा ललकारा। लालकिला जीत लिया लूट लिया माल सारा। धोखा पट्टी सीखी नहीं जंग में पछाड़ ल्याए, मुगलां का सिंहासन जाट दिल्ली तैं उखाड़ ल्याए। साथ मैं नजराना और किले के कि

आर्यवर्त्त के इतिहाश का पतन ??

आर्यावर्त्त के इतिहास का पतन कैसे हुआ। जब आर्यों के इतिहास का पतन हो गया तो साथ ही जाट वीरों के इतिहास का पतन भी हो गया क्योंकि जाट खुद शुद्ध आर्य नश्ल है । जाटों की उत्पत्ति और इनके मूल निवासस्थान के विषय में कुछ देशी-विदेशी इतिहासकारों ने असत्य लेख लिखे हैं और उनका खण्डन विद्वान् इतिहासकारों ने प्रमाण देकर किया है और वास्तविक और सत्य लेख लिखे हैं। इस बारे में यहां पर थोड़ा सा लेख निम्न प्रकार से है -*. 1.जाटों की उत्पत्ति के विषय में असत्य लेख लिखने वाले इतिहासकार - पं० अंगद शास्त्री, श्री चिन्तामणि विनायक वैद्य,हैरोडोटस, स्ट्राबो, कनिंघम,कर्नल जेम्स टॉड, ग्राउस, मेजर बिंगले, स्मिथ, इवेटसन, चौ० लहरीसिंह वकील मेरठ आदि हैं। 2.नवीन हिन्दू धर्म के चलाने वाले पौराणिक ब्राह्मणों ने, बड़ी-बडी क्षत्रिय योद्धा जातियों को जिनमें जाट, गूजर, अहीर, मराठे आदि भी शामिल हैं, उनके सिद्धान्तों को स्वीकार न करने के कारण म्लेच्छ, यवन, शूद्र्, नास्तिक और पतित करार देकर, आर्य क्षत्रियों को बलहीन कर दिया।*. 3.ब्राह्मणों के सेवक राजपूतों ने भी जाटों के साथ वही व्यवहार किया। राजपूतों के सहारे से उन पौरा

महाराजा महेन्द्र प्रताप

संसार के पहले राजा जिन्होंने अपनी सारी संपत्ति तकनीकी शिक्षा के प्रेम महाविद्यालय को दान में दी -राजा महेंद्र प्रताप वर्तमान सृष्टि का लगभग 32 वर्षो का सबसे लंबा अज्ञात वास रखने वाले -राजा महेंद्र प्रताप भारतवर्ष की गुलामी की अवधि 1235 वर्ष से ज्यादा के इतिहास में पहले व्यक्ति जिन्होंने 1 दिसम्बर 1915 को अफगानिस्तान में अस्थाई हिन्द सरकार बनाई ,भारत के पहले राष्ट्रपति बने और बरकतुल्लाह खां को प्रधानमंत्री बनाया -राजा महेंद्र प्रताप आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले -राजा महेंद्र प्रताप संसार संघ (यू.एन.ओ.) की स्थापना करने वाले व्यक्ति -राजा महेंद्र प्रताप जापान सरकार से मार्को पोलो की उपाधि द्वारा सम्मानित -राजा महेंद्र प्रताप भारतवर्ष का पहला राजा व् व्यक्ति जिसने चीन की संसद में भाषण दिया -राजा महेंद्र प्रताप भारतवर्ष का पहला राजनेता जिन्हें तीन बार धोखे से विष दिया गया और अपनी दृढ इच्छा से तीनों बार बच गए -राजा महेंद्र प्रताप 1932 के नोबेल प्राइज नाॅमीनी -राजा महेंद्र प्रताप अटल बिहारी बाजपेयी जैसे भारतरत्नों की जमानत जब्त करवाने वाले राजनेता -राजा महेंद्र प्रत

1857 जटवीर राजा नाहर सिंह जी ( II )

1857 क्रांति के अमर शहीद राजा नाहर सिंह सन् 1857 की रक्तिम क्रांति के समय दिल्ली के बीस मील पूर्व में जाटों की एक रियासत थी। इस रियासत के नवयुवक राजा नाहरसिंह बहुत वीर, पराक्रमी और चतुर थे। दिल्ली के मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान था और उनके लिए सम्राट के सिंहासन के नीचे ही सोने की कुर्सी रखी जाती थी। मेरठ के क्रांतिकारियों ने जब दिल्ली पहुँचकर उन्हें ब्रितानियों के चंगुल से मुक्त कर दिया और मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को फिर सिंहासन पर बैठा दिया तो प्रश्न उपस्थित हुआ कि दिल्ली की सुरक्षा का दायित्व किसे दिया जाए? इस समय तक शाही सहायता के लिए मोहम्मद बख्त खाँ पंद्रह हजार की फौज लेकर दिल्ली चुके थे। उन्होंने भी यही उचित समझा कि दिल्ली के पूर्वी मोर्चे की कमान राजा नाहरसिंह के पास ही रहने दी जाए। बहादुरशाह जफर तो नाहरसिंह को बहुत मानते ही थे।ब्रितानी दासता से मुक्त होने के पश्चात् दिल्ली ने 140 दिन स्वतंत्र जीवन व्यतित किया। इस काल में राजा नाहरसिंह ने दिल्ली के पूर्व में अच्छी मोरचाबंदी कर ली। उन्होंने जगह-जगह चौकियाँ बनाकर रक्षक और गुप्तचर नियुक्त कर दिए। ब्रितानियों ने दिल्ली पर पूर

1857 जटबीर बाबा शाहमल जी ( I )

1857 की क्रांति का जब- जब जिक्र होता है तो हरयाणा (उस वक्त वर्तमान हरयाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तरप्रदेश एक ही भूभाग होता था और हरयाणा कहलाता था) से दो योद्धाओं का खास जिक्र आता है एक बल्लबगढ़ नरेश महायोद्धा अमर शहीद राजा नाहर सिंह जी और दूसरे दादावीर बाबा शाहमल तोमर जी महाराज| जहां दक्षिण-पश्चिमी छोर से बल्लबगढ़ नरेश ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाए थे अंग्रेजों को नचा नचाकर मारा था फिर भी अंग्रेज उनको पराजित नहीं कर सके तो अंग्रेजो ने धोखे से संधि हेतु सफेद झंडा दिखाकर गिरफ्तार कर लिया और 9 जनवरी 1945 को दिल्ली के चाँदनी चौंक पर महान योद्धा को फांसी दे दी गई वहीँ उत्तरी-पूर्वी छोर पर बाबा शाहमल जी ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए थे और इस प्रकार जाटलेंड के वीरों ने दिल्ली की सीमा बचाई थी| वो तो पंडित नेहरू के दादा गंगाधर कौल जैसे अंग्रेजों के मुखबिर ना होते तो अंग्रेज कभी दिल्ली ना ले पाते| बाबा जी के बिषय में उनकी शौर्यता के चर्चे दुश्मनों की जुबान से कुछ यूँ निकले थे: डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को बाबा शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा| इसने अपन

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा पढ़ा जाट खुदा जैसा

“अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा” यह घटना सन् 1270-1280 के बीच की है । दिल्ली में बादशाह बलबन का राज्य था । उसके दरबार में एक अमीर दरबारी था जिसके तीन बेटे थे । उसके पास उन्नीस घोड़े भी थे । मरने से पहले वह वसीयत लिख गया कि इन घोड़ों का आधा हिस्सा... बड़े बेटे को, चौथाई हिस्सा मंझले को और पांचवां हिस्सा सबसे छोटे बेटे को बांट दिया जाये । बेटे उन 19 घोड़ों का इस तरह बंटवारा कर ही नहीं पाये और बादशाह के दरबार में इस समस्या को सुलझाने के लिए अपील की । बादशाह ने अपने सब दरबारियों से सलाह ली पर उनमें से कोई भी इसे हल नहीं कर सका । उस समय प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो बादशाह का दरबारी कवि था । उसने हरयाणा के लोगों की वीर भाषा को समझाने के लिए एक पुस्तक भी बादशाह के कहने पर लिखी थी जिसका नाम “खलिक बारी” था । खुसरो ने कहा कि मैंने हरयाणा में खूब घूम कर देखा है और पंचायती फैसले भी सुने हैं और सर्वखाप पंचायत का कोई पंच ही इसको हल कर सकता है । नवाब के लोगों ने इन्कार किया कि यह फैसला तो हो ही नहीं सकता पर परन्तु कवि अमीर खुसरो के कहने पर बादशाह बलबन ने सर्वखाप पंचायत में अपने एक खास आदमी क

600 जाटो वीरो की एक वीर गाथा

600 JATS VS 50,000 MARATHAS ग्वालियर और जाट 600 जाट वीरो ने हज़ारो मराठो के छके छुड़ा दिए यह अमर कथा सन १७८१ ईसवी में ग्वालियर के किले पर गोहद के राणा छत्र सिंह का आधिपत्य स्थापित था पर आधारित है गोहद के राणा छत्रसिंह जाट थे, और गोहद में अपनी मौजूदगी दिखा कर महादजी सिंधिया को दूर रखते थे. महादजी भी अभी किसी पंगे में नहीं पड़ना चाहता था, एक चालाक लोमड़ी की तरह वह मौके की तलाश में था की कब वह अपने जानी दुश्मन, गोहद के राणा को नेस्तनाबूत कर सके. और इसका मौका उसे भरपूर मिला, लेकिन जाटों की नस्ल कुछ अलग सी, आज़ाद ख्याल और दुश्मन की गुलामी तो वे सोचते भी नहीं, ये बात वह अच्छे से समझने वाला था. राणा छत्रसिंह {1757-1785} गोहद का सर्वश्रेष्ठ तथा सबसे शक्तिशाली जाट शासक था. उसके शासन काल में गोहद ने नयी बुलंदिओं को छुआ. भरतपुर के बाहर जाटों का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया गोहद. राणा छत्रसिंह मध्य और उत्तर भारत का पहला राजा और गोहद पहला राज्य था जिसने सिंधिया जैसे बड़े मराठा सेनापति को कड़ी टक्कर दी. राणा की सबसे बड़ी सफलता ग्वालियर के किले पर विजय थी. लगभग 30 वर्ष का शासनकाल गोहद के जाटों

जाट रागणी

जाट मैहर सिंह दहिया अरै फ़ौज मै जाकै भूल ना जाइये अपनी प्रेमकौर नै । डर डर कै मर ज्यांगी पिया मै देख कै घटा घोर नै ॥ हाँ तेरे बिना पिया इस घर मै दिखे घोर अँधेरा । गाम बरोने मै तेरे बिन दिखे उज्जड डेरा । चंदा बिना चकोरी सुनी सबने हो श बेरा । रही थान पै कूद बछेरी कित्त जा श छोड़ बछेरा । और फीका पड़ गया चेहरा मेरा फीका पड़ गया चेहरा मेरा कित्त लुट्टे मेरे त्योंर नै । डर डर कै मर ज्यांगी पिया मै देख कै घटा घोर नै ॥ हाँ शाम सावेरी मन्ने एकली नै खेता मै जाणा हो । बदमास्याँ की टोली घुमै मुश्किल गात बचाणा हो । तेरी खातर रहूंगी जीवती जब तक पाणी दाणा हो । नहीं मौत का कोई भरोसा कद हो ज्या माल बिराणा हो । हाँ बिना मोरनी कौन नचावैबिना मोरनी कौन नचावै रंग रंगीले मोर नै । अरै डर डर कै मर ज्यांगी पिया मै देख कै घटा घोर नै ॥ हाँ पतला गात बैद ज्यू लरजे पाड़ी खिली जोर की । होठ गुलाबी चमकै श जणू बिजली पुरे पोर की । काली गौ मै तेरी सु देखू सु बाँट खोर की । पतले पतले होठ मेरे जैसे बिजली पूरे पोर की । हाँ कठपुतली की तरियां नाचूँ कठपुतली की तरियां नाचूँ जद तू हलावे डोर नै । डर डर कै मर ज

Jat Regiment

For Jat Regiment You have to know some interesting Facts 1. The Jat Regiment is an infantry regiment of the Indian Army and is one of the longest serving and most decorated regiments of the Indian Army. 2. The regiment has won 41 battle honours between 1839 to 1947 and post independence 9 battle honours,10 Unit Citations, 2 Victoria Crosses,4 Indian Order of Merits,2 George Crosses, 3 Ashok Chakras, 10 Mahavir Chakras, 8 Kirti Chakras, 35 Shaurya Chakras, 40 Vir Chakras and 170 Sena Medals. 3. its serve the country over 200 years (i'm very proud of this.). 4. The battle cry, adopted in 1955, in Hindi, is जाट बलवान, जय भगवान (IAST: Jāt Balwān, Jai Bhagwān), which means "The Jat is Powerful, Victory Be to God!". 5. The Jat Regiment's class composition mostly consists of Hindu Jatts and sikh jatts from Western Uttar Pradesh,punjab, Haryana, Rajasthan and Delhi except for 3 Battalions whose ethnic make-up is as follows. 6. Currently the regiment has a streng

जाट किसान

कैसे कर खेती न पालूं खाद बीज सब होगे महंगे कैसे कर पानी लाऊं बिजली के बिल भी होगे महंगे म्हारी एक आशया खेती की और कोई कमाई ना में सबका पेट पालूं फिर भी मेने भलाई ना ।। . कुलदीप पिलानिया जाट बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

भोला किसान

रे आके देख धरा पे भोले किसान के हालाँ ने आँख खोल के देख ले भोले सरकारां की चालां ने किसान बीच आके भोले समझादे सारे लालां ने रे यो जाड़ा गर्मी खेत कमावे फिर भी पेट इसका भरता ना मार दिया इन सरकारां ने अर तू भी टेम ते बरसता ना भोले जे तू सुनले मेरी पुकार ते किसान बिन आई मोत मरता ना ।। कुलदीप पिलानिया जाट बुलंदशहर उत्तर प्रदेश 

जाट के काम

जाटां ने सदा ते दो काम रखे  बतन खातिर लड़ना  अन्न ऊगा के सबका पेट भरना  जय जाट देवता