आर्यवर्त्त के इतिहाश का पतन ??


आर्यावर्त्त के इतिहास का पतन कैसे हुआ। जब आर्यों के इतिहास का पतन हो गया तो साथ ही जाट वीरों के इतिहास का पतन भी हो गया क्योंकि जाट खुद शुद्ध आर्य नश्ल है । जाटों की उत्पत्ति और इनके मूल निवासस्थान के विषय में कुछ देशी-विदेशी इतिहासकारों ने असत्य लेख लिखे हैं और उनका खण्डन विद्वान् इतिहासकारों ने प्रमाण देकर किया है और वास्तविक और सत्य लेख लिखे हैं। इस बारे में यहां पर थोड़ा सा लेख निम्न प्रकार से है -*.
1.जाटों की उत्पत्ति के विषय में असत्य लेख लिखने वाले इतिहासकार - पं० अंगद शास्त्री, श्री चिन्तामणि विनायक वैद्य,हैरोडोटस, स्ट्राबो, कनिंघम,कर्नल जेम्स टॉड, ग्राउस, मेजर बिंगले, स्मिथ, इवेटसन, चौ० लहरीसिंह वकील मेरठ आदि हैं।
2.नवीन हिन्दू धर्म के चलाने वाले पौराणिक ब्राह्मणों ने, बड़ी-बडी क्षत्रिय योद्धा जातियों को जिनमें जाट, गूजर, अहीर, मराठे आदि भी शामिल हैं, उनके सिद्धान्तों को स्वीकार न करने के कारण म्लेच्छ, यवन, शूद्र्, नास्तिक और पतित करार देकर, आर्य क्षत्रियों को बलहीन कर दिया।*.
3.ब्राह्मणों के सेवक राजपूतों ने भी जाटों के साथ वही व्यवहार किया। राजपूतों के सहारे से उन पौराणिक ब्राह्मणों, भाटों और चारणों ने जाट, गूजर और अहीरों को क्षत्रिय न कहने और न मानने के काफी प्रचार और लेख लिख डाले। भाटों और चारणों की बहियों में यहां तक लिखवा दिया गया कि फलां राजपूत ने एक जाट की लड़की से विवाह कर लिया, जिस कारण राजपूत समाज ने उसे जाति से बाहर कर दिया, उससे जो लड़का हुआ उसके नाम से जाटों का फलां गोत्र चला। जाटों के काफी गोत्रों का निकास इसी प्रकार से उनकी बहियों में लिखा मिलता है जो कि मनगढंत, बेहूदा और असत्य है*।
हम पहले लिख चुके हैं कि राजपूत नाम की जाति (संघ) छठी सदी में बनी और सातवीं सदी से पहले इनका नाम किसी इतिहास में, नहीं आया तथा विदेशी आक्रमणकारी जैसे यूनान, शक, हूण, मुसलमान आदि शत्रुओं से टक्कर वीर जाटों ने पश्चिम भारतीय सीमा पर ली। जाटों से तो राजपूत अवश्य हुये जो अब तक भी अपना गोत्र जाटों वाला मानते हैं, परन्तु राजपूतों की सन्तान जाट कहलाई यह असत्य है, सो न मानने योग्य बात है।*
.4.इन पौराणिक ब्राह्मणों के मौखिक व लेखों और भाटों की बहियों (पोथी) के आधार पर कई एक विदेशी इतिहसकारों ने जाटों को शूद्र लिखा ।*.
5.इसी आधार पर ए० एच० बिंगले ने अपनी पुस्तक “जाट्स अहीर और गूजर” में जाटों के कई गोत्रों का निकास, राजपूत पुरुष का विवाह जाट लड़की से हुआ, उनकी सन्तान के नाम से हुआ लिखा है और लिखा है कि ये राजपूतों की औलाद हैं। जैसे 1.गठवाला(मलिक),जाखड़, 3.सांगवान, 4.मान, 5.दलाल, 6.नैन, 7.अहलावत, 8.बैनीवाल, 9.राठी, 10.धनखड़, 11.दहिया, 12.हुड्डा, 13.कादियाण, 14.देसवाल, 15.सहरावत आदि। यह असत्य लेख है जिसके लिए कोई प्रमाण नही है। इन गोत्रों (वंशों) की उत्पत्ति वैदिककाल से और कई एक की रामायण या महाभारत काल से है और इन वंशो का राज्य देश विदेशों में था, तब तक तो राजपूत जाति का नाम तक भी न था। एक भी जाट गोत्र ऐसा नहीं है जो राजपूतों का वंशज हो। इसके ठोस प्रमाण दे दिये गये हैं। आशा है कि जाट-जगत् ऐसी बेहूदी और असत्य बातों पर विश्वास नहीं करेगा।*.
अंत में यही कहूँगा - एक वर्ग ऐसा है जो जाटों को उन्नत देखना नहीं चाहता, जो हजारों वर्षों से जाटों का शोषण करता रहा है। मैं जो कुछ जाटों के लिए कर रहा हूं इससे भी वह मुझ पर अत्यन्त नाराज हैं। किन्तु मैं चाहता हूँ कि आप लोग इस कार्य को आगे बढ़ाते रहना। भाइयों समझ गये होंगे कि यह वर्ग कौन-सा है? पौराणिक !

कुलदीप पिलानिया बाँहपुरिया
बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश ।।

टिप्पणियाँ

  1. आर्यावर्त्त के इतिहास का पतन तो हो गया साथ साथ जाटों का भी हो गया ।

    नरेंद्र सिंह सांगवान


    jatgazette.blogspot.in

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  2. जी भाई बिलकुल जाट एक central asian आर्यन नस्ल है ।।
    जो central asia से भारत(पंजाब) अफगानिस्तान में आए
    तो आर्यो के साथ जाटो का भी पतन हो गया ।।
    कुलदीप पिलानिया बाँहपुरिया

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