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1857 जटवीर राजा नाहर सिंह जी ( II )

1857 क्रांति के अमर शहीद राजा नाहर सिंह सन् 1857 की रक्तिम क्रांति के समय दिल्ली के बीस मील पूर्व में जाटों की एक रियासत थी। इस रियासत के नवयुवक राजा नाहरसिंह बहुत वीर, पराक्रमी और चतुर थे। दिल्ली के मुगल दरबार में उनका बहुत सम्मान था और उनके लिए सम्राट के सिंहासन के नीचे ही सोने की कुर्सी रखी जाती थी। मेरठ के क्रांतिकारियों ने जब दिल्ली पहुँचकर उन्हें ब्रितानियों के चंगुल से मुक्त कर दिया और मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को फिर सिंहासन पर बैठा दिया तो प्रश्न उपस्थित हुआ कि दिल्ली की सुरक्षा का दायित्व किसे दिया जाए? इस समय तक शाही सहायता के लिए मोहम्मद बख्त खाँ पंद्रह हजार की फौज लेकर दिल्ली चुके थे। उन्होंने भी यही उचित समझा कि दिल्ली के पूर्वी मोर्चे की कमान राजा नाहरसिंह के पास ही रहने दी जाए। बहादुरशाह जफर तो नाहरसिंह को बहुत मानते ही थे।ब्रितानी दासता से मुक्त होने के पश्चात् दिल्ली ने 140 दिन स्वतंत्र जीवन व्यतित किया। इस काल में राजा नाहरसिंह ने दिल्ली के पूर्व में अच्छी मोरचाबंदी कर ली। उन्होंने जगह-जगह चौकियाँ बनाकर रक्षक और गुप्तचर नियुक्त कर दिए। ब्रितानियों ने दिल्ली पर पूर

1857 जटबीर बाबा शाहमल जी ( I )

1857 की क्रांति का जब- जब जिक्र होता है तो हरयाणा (उस वक्त वर्तमान हरयाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तरप्रदेश एक ही भूभाग होता था और हरयाणा कहलाता था) से दो योद्धाओं का खास जिक्र आता है एक बल्लबगढ़ नरेश महायोद्धा अमर शहीद राजा नाहर सिंह जी और दूसरे दादावीर बाबा शाहमल तोमर जी महाराज| जहां दक्षिण-पश्चिमी छोर से बल्लबगढ़ नरेश ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाए थे अंग्रेजों को नचा नचाकर मारा था फिर भी अंग्रेज उनको पराजित नहीं कर सके तो अंग्रेजो ने धोखे से संधि हेतु सफेद झंडा दिखाकर गिरफ्तार कर लिया और 9 जनवरी 1945 को दिल्ली के चाँदनी चौंक पर महान योद्धा को फांसी दे दी गई वहीँ उत्तरी-पूर्वी छोर पर बाबा शाहमल जी ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए थे और इस प्रकार जाटलेंड के वीरों ने दिल्ली की सीमा बचाई थी| वो तो पंडित नेहरू के दादा गंगाधर कौल जैसे अंग्रेजों के मुखबिर ना होते तो अंग्रेज कभी दिल्ली ना ले पाते| बाबा जी के बिषय में उनकी शौर्यता के चर्चे दुश्मनों की जुबान से कुछ यूँ निकले थे: डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को बाबा शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा| इसने अपन

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा पढ़ा जाट खुदा जैसा

“अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा” यह घटना सन् 1270-1280 के बीच की है । दिल्ली में बादशाह बलबन का राज्य था । उसके दरबार में एक अमीर दरबारी था जिसके तीन बेटे थे । उसके पास उन्नीस घोड़े भी थे । मरने से पहले वह वसीयत लिख गया कि इन घोड़ों का आधा हिस्सा... बड़े बेटे को, चौथाई हिस्सा मंझले को और पांचवां हिस्सा सबसे छोटे बेटे को बांट दिया जाये । बेटे उन 19 घोड़ों का इस तरह बंटवारा कर ही नहीं पाये और बादशाह के दरबार में इस समस्या को सुलझाने के लिए अपील की । बादशाह ने अपने सब दरबारियों से सलाह ली पर उनमें से कोई भी इसे हल नहीं कर सका । उस समय प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो बादशाह का दरबारी कवि था । उसने हरयाणा के लोगों की वीर भाषा को समझाने के लिए एक पुस्तक भी बादशाह के कहने पर लिखी थी जिसका नाम “खलिक बारी” था । खुसरो ने कहा कि मैंने हरयाणा में खूब घूम कर देखा है और पंचायती फैसले भी सुने हैं और सर्वखाप पंचायत का कोई पंच ही इसको हल कर सकता है । नवाब के लोगों ने इन्कार किया कि यह फैसला तो हो ही नहीं सकता पर परन्तु कवि अमीर खुसरो के कहने पर बादशाह बलबन ने सर्वखाप पंचायत में अपने एक खास आदमी क

600 जाटो वीरो की एक वीर गाथा

600 JATS VS 50,000 MARATHAS ग्वालियर और जाट 600 जाट वीरो ने हज़ारो मराठो के छके छुड़ा दिए यह अमर कथा सन १७८१ ईसवी में ग्वालियर के किले पर गोहद के राणा छत्र सिंह का आधिपत्य स्थापित था पर आधारित है गोहद के राणा छत्रसिंह जाट थे, और गोहद में अपनी मौजूदगी दिखा कर महादजी सिंधिया को दूर रखते थे. महादजी भी अभी किसी पंगे में नहीं पड़ना चाहता था, एक चालाक लोमड़ी की तरह वह मौके की तलाश में था की कब वह अपने जानी दुश्मन, गोहद के राणा को नेस्तनाबूत कर सके. और इसका मौका उसे भरपूर मिला, लेकिन जाटों की नस्ल कुछ अलग सी, आज़ाद ख्याल और दुश्मन की गुलामी तो वे सोचते भी नहीं, ये बात वह अच्छे से समझने वाला था. राणा छत्रसिंह {1757-1785} गोहद का सर्वश्रेष्ठ तथा सबसे शक्तिशाली जाट शासक था. उसके शासन काल में गोहद ने नयी बुलंदिओं को छुआ. भरतपुर के बाहर जाटों का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया गोहद. राणा छत्रसिंह मध्य और उत्तर भारत का पहला राजा और गोहद पहला राज्य था जिसने सिंधिया जैसे बड़े मराठा सेनापति को कड़ी टक्कर दी. राणा की सबसे बड़ी सफलता ग्वालियर के किले पर विजय थी. लगभग 30 वर्ष का शासनकाल गोहद के जाटों