राजस्थान के जाटो का इतिहाश व् उनका आपस में बैर आपस में लड़ो मत बिखर'' जाओगे मौत आने से पहले अपनी ही नज़र में गिर जाओगे ★ 💪💪💪💪💪💪💪💪 प्रिय जाट बन्धुओ आप से एक निवेदन है जाटो में प्रचलित कुछ गलत धारणा जो आज भी बुजुर्ग लोगो में प्रचलित है जैसे की राजस्थान के जाटों में चार तड है जो बिलकुल गलत बात है जो कुछ पंडो दुआर चलाई गयी थी जो पूर्ण रूप से क्षेत्र पर आधारित थी । जाटों के लिए यह कहावत भी तो है ''अपनों को छोड़ गैरो को गले लगते है '' ''यह बात बिलकुल सही है जाट को जाट मारे या करतार (भगवान )'' जाटो की पंडो ने चार तड बताई है जो की सिनसिनवार ,जोहिया , धोलिया ,आणना , है जबकि पहले तीन तो गोत्र है जो की एक राजवंश गोत्र है भरतपुर नरेश सिनसिनवार है तो वीर तॆजा जी धोलिया गोत्र है और जोहिया जाट पंजाब पाकिस्तान में राजवंश था । इस तड का उदेश केवल और केवल जाटो की ताकत को तोडना था । पंडो के अनुसार यह तड आपस में शादी नही कर सकती है लकिन लड़ सकती है धोलिया जाट तड टोंक अजमेर क्षेत्र में बताई जबकि सिनसिनवार भरतपुर ,करोली में तो जोहिया बीकानेर में
महाराजा सूरजमल जी की धोके से म्रत्यु के बाद का इतिहाश (महाराजा सूरजमल जी का इतिहाश निचे comment में link में पढ़ सकते हैं) महाराजा की म्रत्यु का सन्देश जब भरतपुर पहुंचता है तो महारानी क्या कहती हैं अपने बेटे से :-----“तुम पगड़ी बांधे फिरते हो और वहां शाहदरा के झाऊओं में तुम्हारे पिता की पगड़ी उल्टी पड़ी है!” - महारानी किशोरी देवीएक जीत, सम्मान, शौर्य और प्रतापी तेज की भूखी शेरनी जाटणी का यही वो तान्ना था जिसने उनके सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह को भारतेंदु बना दिया।यही वो रूदन था जिसको सुन अपने पिता की अकस्मात मौत के बदले हेतु एक लाख सेना के साथ रणबांकुरे जवाहरमल ने सीधा दिल्ली पर हमला दे बोला।महाराजा सूरजमल की बहादुर रानी जिसने लाल किले की चढ़ाई में भाग लिया तथा पुष्कर में भी की जीत का कारण बनी तथा वहां जाट घाट बनवाया।जब 1763 में महाराजा सूरजमल शाहदरा के पास धोखे से मारे गये तो महारानी किशोरी (होडल के प्रभावशाली सोलंकी जाट नेता चौ. काशीराम की पुत्री) ने महाराजा जवाहर सिंह को एक ही ताने में यहकहकर कि "तुम पगड़ी बांधे फिरते हो और वहां शाहदरा के झाऊओं में तुम्हारे पिता की पगड़ी उल्
जट्ट वीरो आज एक ऐसी कहानी आपके बीच ला रहा हुँ जिसके कारण लोहागढ नरेश महाराजा सूरजमल जट अफलातून कहलाए… जब दिल्ली पर मुगल बादशाह अहमदशाह का राज था बादशाह के दरबार मेँ एक पंडित रहता था पंडित कि पत्नी रोज पंडित के लिए खाना ले जाती थी । एक दिन पंडित कि बेटी हरजोत अपने पिता के लिए खाना लेके गई । हरजोत जब वापस घर चली गई तो बादशाह ने पंडित को पूछा तेरी बेटी है क्या ये । पंडित बोला हाँ, तो बादशाह बोला तुने अब तक ये बात हमसे छुपाई कोई बात नि पर सुन हरजोत हमारे दिल को छू गई मै उसे अपनी बेगम बनाना चाहता हूँ । पंडित बोला हुजूर दया करो ऐसा मत सोचो आप कि बेटी है बादशाह बोला बेटी थी पंडित पर अब कुछ अलग है पंडित गिडगिडाने लगा और बादशाह के पैरोँ मेँ गिर गया लेकिन पत्थर दिल मेँ दया कहाँ बादशाह बोला सुन सात दिन मेँ हरजोत का डोला ले लिया जाएगा… पंडित रात को घर पहुंचा और चिंता कि लकीरें माथे पर लेके बैठ गया तो पंडितानी और बेटी ने पूछा तो पंडित कि आँखोँ से आंसुओँ कि धार तो हरदौल बोली पिताजी जो हुआ है बताओ तो पंडित ने सारा दुखडा बेटी को रो दिया बेटी बोली पिताजी मेँ धर्म ना बदलूंगी चाह
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