1857 जटबीर बाबा शाहमल जी ( I )


1857 की क्रांति का जब- जब जिक्र होता है तो हरयाणा (उस वक्त वर्तमान हरयाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तरप्रदेश एक ही भूभाग होता था और हरयाणा कहलाता था) से दो योद्धाओं का खास जिक्र आता है एक बल्लबगढ़ नरेश महायोद्धा अमर शहीद राजा नाहर सिंह जी और दूसरे दादावीर बाबा शाहमल तोमर जी महाराज| जहां दक्षिण-पश्चिमी छोर से बल्लबगढ़ नरेश ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाए थे अंग्रेजों को नचा नचाकर मारा था फिर भी अंग्रेज उनको पराजित नहीं कर सके तो अंग्रेजो ने धोखे से संधि हेतु सफेद झंडा दिखाकर गिरफ्तार कर लिया और 9 जनवरी 1945 को दिल्ली के चाँदनी चौंक पर महान योद्धा को फांसी दे दी गई वहीँ उत्तरी-पूर्वी छोर पर बाबा शाहमल जी ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए थे और इस प्रकार जाटलेंड के वीरों ने दिल्ली की सीमा बचाई थी| वो तो पंडित नेहरू के दादा गंगाधर कौल जैसे अंग्रेजों के मुखबिर ना होते तो अंग्रेज कभी दिल्ली ना ले पाते|

बाबा जी के बिषय में
उनकी शौर्यता के चर्चे दुश्मनों की जुबान से कुछ यूँ निकले थे: डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर
रहा था, को बाबा शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा| इसने अपनी डायरी में लिखा है, "चारों तरफ से उभरते हुये जाट नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था|" एक और अंग्रेजी सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि, "एक जाट (बाबा शाहमल तोमर जी) ने जो बड़ौत परगने का गवर्नर हो गया था और जिसने राजा की पदवी धारण कर ली थी, उसने तीन-चार अन्य परगनों पर
नियंत्रण कर लिया था। दिल्ली के घेरे के समय जनता और दिल्ली इसी व्यक्ति के कारण जीवित रह सकी। प्रचार-प्रसार और अपनों को याद ना करने की बुरी आदत का नतीजा यह होता है कि फिर हमें कागजी वीरों और नकली शहीदों को गाने वालों की ही सच माननी पड़ती है| इससे बचने के लिए जरूरी है कि हम ना सिर्फ असली शहीदों और वीरों का प्रचार-प्रसार और उनको याद करें, वरना नवयुवा पीढ़ी तक यह बातें ज्यों-की-त्यों एक विरासत की भांति
स्थांतरित हुई कि नहीं यह उनके बचपन से ही सुनिश्चित करें| इसलिए इस भ्रमजाल से बाहर आईये कि 'जाट तो इतिहास बनाते हैं, लिखते नहीं'
क्योंकि इतिहास बनाने के बराबर ही उसको लिखने और गाने की भी जरूरत होती है| वर्ना तो वही बात फिर कागजी वीर घड़ने वाले, असली वीरों को उनकी लेखनी से ढांप देते हैं| 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के अमरप्रतापी
महायोद्धा अमर शहीद दादावीर बाबा शाहमल

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