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अर्जन सिंह भुल्लर विश्व चैम्पियन जाट

  अर्जन सिंह भुल्लर बने पहले भारतीय MMA World Heavyweight Champion !! अर्जन सिंह भुल्लर का जन्म ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा के रिचमोंड सहर में भुल्लर गोत्र के सिख जाट परिवार में हुआ था, अर्जन का परिवार खानदानी पहलवानों का परिवार है उनके पिता और दादा जी भी अपने समय में कॉफई अच्ची पहलवानी किया करते थे और उस समय के बाड़े पहलवानों में सुमार थे, अर्जन इस समय 35 साल के हैं और 2 दिन पहले सिंगापुर में हुए One Championship MMA के " One Dangal " मैच में पुराने World Heavyweight Champion ब्रैंडन वेरा को हराकरMMA इतिहास के पहले भारतीय World Heavyweight Champion बन गए हैं ! One Championship के सिंगापुर में हुए इस मुकाबले में 4 भारतीय MMA फाइटरों में हिस्सा लिया था जिसमें से 3 जाट थे ! 1. अर्जन सिंह भुल्लर ( भुल्लर जाट ) 2. रितु फोगाट ( फोगाट जाट ) 3. गुरदर्शन मनगट ( मनगट जाट )  अर्जन सिंह भुल्लर का पहलवानी करियर भी काफी शानदार रहा है उन्होंने 9 अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं जिसमें से 6 स्वर्ण पदक हैं ! एक कॉलेजिएट पहलवान के रूप में, उन्होंने उस समय एक NAIA विश्वविद्यालय में साइम

Jaat Shayri | जाट शायरी | Jat Shayri

 हेलो दोस्तो उम्मीद करता हूँ आपको शायरी पसंद आएगी, ये पार्ट 1 है इसमें आपको 10 शायरी मिलेंगी ऐसे ही आगे भी बेहतरीन अच्छी शायरी हम आपके साथ शेयर करते रहेंगे,    ▶बेरण बरगी नारी नही, माँ ते ज्यादा कोई प्यारी नही, जाट के जैसी यारी नहीं!!🔥 #Jaat Status ▶दीमाग अपना haही गरम हो गयी लड़ाई शामत जब आयी, जब बीच में आया जाट भाई.. बैरण बोली देख के लड़ा कर करा ली ना कुटाई!!🔥 #Jatt Attitude Status ▶तेरे ऊपर आग्या दिल भोले भाले जाट का तेरी हां की बाट मैं बेठ्या छोरा जाट का!!🔥 #Jaat Status ▶गलती हो गई बाबा, नशे में प्यार करग्या...! सायद वो आपणा ए था, जो ठंडा वार करग्या!!🔥 #Jaat Bhai #jaatshayri ▶बंजर नहीं हूं मैं.... मुझमें बहुत सी नमी है....! दर्द बयां नहीं करता... बस इतनी सी कमी है...!!🔥 #Sad Jaat Status ▶जलने वालों को हम यूं ही जलाते रहेंगे...! जाट अपनी चौधराहट यूं ही चलाते रहेंगे!!🔥 #Jaat Attitude Status ▶बढ़ती #उम्र और बढ़ती #पहचान बढ़ती #दुश्मनी और बढ़ता #नाम सब कुछ है हम #जाट भाइयों के पास!!🔥 #Jaat Attitude ▶बिकने वाले ओर भी हैं, जा कर खरीद ले, जाट कीमत से नहीं, किस्मत से मिला करते हैं…!!

राजा महेंद्र प्रताप के बारे में कुछ अनछुए पहलू

 स्वत्रंता सेनानी, आजाद हिंद फौज के संस्थापक, नोबेल पुरस्कार के लिए नामित प्रथम भारतीय, AMU और BHU को जमीन दान करने वाले मुरसान (हाथरस) रियासत के राजा महेंद्र प्रताप सिंह को महादानी सेठ छज्जूराम लाम्बा, रहबरे आजम छोटूराम ओहलान और विलक्षण राजनीतिक चौधरी चरणसिंह तेवतिया का मिश्रण कहूं तो अतिश्योक्ति नही होगी। उनका जन्म सनातन परिवार में हुआ, शिक्षा मुस्लिम परिवार में और शादी जींद के सिख जाट परिवार में हुई थी, एक तरह से दुनियां की इकलौती मिसाल। जब ये ससुराल जाते थे तो 21 तोपो की सलामी दी जाती थी।  पाखंडो से आजिज आकर 24 मई 1909 में भौतिकवादी दुनियां मे देश को पहला ITI दिया, जिसमें बुलंदशहर के 5 गांव दान दिये, जिनकी वार्षिक आय 27500 रू थी। 1911 नवम्बर से इन्होंने अछूत कहे जाने वाले मेहनती लोगों को नौकर रखना शुरू कर दिया, जिन्हें जाटव नाम इनका ही ही दिया हुआ हैं। सन 1913 में इन्होंने "निर्बल सेवक पत्र" जिसमें पर्दे का विरोध, स्त्री शिक्षा एवं समानता, छूआछूत को भगाना, सभी मानवों के साथ एक जैसा व्यवहार करना, भारत की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का प्रचार शुरू किया।  2 अक्टूबर सन 1915

जाट-जाटणी जो होवै सो कहलावे

जाट-जाटणी जो होवै सो कहलावै: 1) जाट धर्म होवै तो सर छोटूराम कहलावै, 2) जाट संत होवै तो धन्ना भगत कहलावै, 3) जाट धम्म होवै तो बुद्ध कहलावै, 4) जाटणी रण लेवे तो दादीराणी भागीरथी महारानी कहलावै, 5) जाटणी स्वाभिमानी होवै तो दादीराणी समाकौर गठवाली कहलावै, 6) जाटणी छत्रधारिणी होवै तो महारानी किशोरीबाई कहलावै, 7) जाटनी सिंहनी होवै तो दादीराणी भंवरकौर कहलावै, 8) जाट शाही होवै तो महाराजा पोरस कहलावै, 9) जाट शांतिदूत होवै तो सम्राट अशोक कहलावै, 10) जाट कूटनीतिक होवै तो महाराजा सूरजमल कहलावै, 11) जाट क्षत्री होवै तो महाराजा जवाहरमल कहलावै, 12) जाट आशिक होवै तो रांझा कहलावै, 13) जाट दानी होवै तो सेठ छाजूराम कहलावै, 14) जाट जागरूक होवै तो राजा महेंद्र प्रताप कहलावै, 15) जाट नायक होवै तो चौधरी चरण सिंह कहलावै, 16) जाट देशभगत होवै तो सरदार भगत सिंह कहलावै, 17) जाट सैनिक होवै तो जसवंत सिंह रावत कहलावै, 18) जाट लोकतांत्री होवै तो महाराजा हर्षवर्धन कहलावै, 19) जाट केसरी होवै तो महाराजा रणजीत सिंह कहलावै, 20) जाट किंगमेकर होवै तो ताऊ देवीलाल कहलावै, 21) जाट पहलवान होवै तो दारा सिंह कहलावै, 22) जाट धर्मर

1857 जाट क्रांति के शहीदों के बारे में पढ़ें

1857 जाट क्रांति (पुरा लेख अवश्य पढ़ें) बड़ौत- बागपत ~ यह क्षेत्र खापों का क्षेत्र है यहां आज भी 84 गाँवो का संघ है इसे तोमर 84 के नाम से जाना जाता है । ये छः थम्ब हैं 14-14 गांव केयह बड़ौत चोरासी इसका पहला चौधरी सलकपाल का छोटा बेटा राव देशपाल तोमर था ।बाबा शाहमल तोमर के नेतृत्व में इस क्षेत्र में जो खाप पंचायत हुई थी उसमे तीन अहम फैसले लिए गए थे -- 1. अंग्रेजो को किसी प्रकार की आपूर्ति न होने देना 2. क्रान्तिकारियो को खाने-पीने के लिए सामान की आपूर्ति करना 3.मेरठ और दिल्ली के सम्पर्क मार्गो को ठप्प करना । ।इस युद्ध में शहीद हुए वीर योद्धा * बाबा शाहमल तोमर (इनके बारे में पिछली ब्लॉग पोस्ट में पढ़ सकते हैं) *राजा नहर सिंह तेवतिया (इनके बारे में आप पिछली ब्लॉग पोस्ट में पढ़ सकते हैं) *भगत सिंह - बाबा शाहमल तोमर का भतीजा इन महान क्रन्तिकारी ने डनलप के ऊपर धावा बोला था लेकिन वह बाल बाल बच गया । बाबा की शहादत के पश्चात भगत ने सूरजमल के साथ मिलकर आखरी डदम तक संघर्ष जारी रखा * चौधरी श्यो सिंह - उस समय के खाप के चौधरी श्यो सिंह तथा उनके पुत्र गोविन्द सिंह दोनों बाबा के खास सहयोगी थे ।

वीरांगना भंवरी कौर (अमरवीर गोकुला सिंह की बहन)

बृज बाला शहीद भंवरी कौर अमर शहीद गोकुल सिंह की बहिन थी. सामान्यतया यह प्रचार इतिहास में किया गया है कि गोकुलसिंह की बहिन ओर रिश्तेदारों को मुसलमान बना लिया गया था. यह तथ्य ग़लत है जो इस लेख से स्थापित होता है. यह खोजपूर्ण लेख आगरा से प्रकाशित पत्रिका जाट समाज के अगस्त 1995 में छपे लेख पर आधारित है. औरंगजेब की धर्मान्धता पूर्ण नीति सर यदुनाथ सरकार लिखते हैं - "मुसलमानों की धर्मान्धता पूर्ण नीति के फलस्वरूप मथुरा की पवित्र भूमि पर सदैव ही विशेष आघात होते रहे हैं. दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर स्थित होने के कारण, मथुरा की ओर सदैव विशेष ध्यान आकर्षित होता रहा है. वहां के हिन्दुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. सन १६७८ के प्रारम्भ में अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला. अब्दुन्नवी ने पिछले ही वर्ष, गोकुलसिंह के पास एक नई छावनी स्थापित की थी. सभी कार्यवाही का सदर मुकाम यही था. गोकुलसिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया. मुग़ल सैनिकों ने लूटमार से लेकर कि

माता अमृता देवी बेनीवाल जी - एक महान जाटणी (जाट जननी)

माता अमृता देवी बेनीवाल 1787 में राजस्थान के मारवाड (जोधपुर) रियासत पर राजा अभय सिंह राजपूत का राज था। उनका मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी था। उस समय  महराण गढ़ किले में फूल महल नाम का राजभवन का निर्माण किया जा रहा था। महल निर्माण के दौरान लकड़ियों की आवश्यकता पड़ी तो महाराजा अभय सिंह ने मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी को लकडियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया , मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी  की नजर महल से करीब 24 किलोमीटर दूर स्थित गांव खेजडली पर पड़ी। मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी  अपने  सिपाहियों के साथ  1787 में भादवा सुदी 10वीं मंगलवार के दिन  खेजडली गांव पहुंच गए। उन्होंने रामू जाट (खोड़) के व्यक्ति के खेजड़ी के वृक्ष को काटना आरंभ कर दिया। कुल्हाड़ी की आवाज सुनकर रामू खोड की पत्नी अमृता बेनीवाल घर से बाहर आई। उसने बिशनेई धर्म के नियमों का हवाला देते हुए पेड़ काटने से रोका लेकिन सिपाही नहीं माने। इस पर अमृता बेनीवाल पेड़ से चिपक गई और कहा कि पहले मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े होंगे-इसके बाद ही पेड़ कटेगा। राजा के सिपाहियों ने उसे पेड़ से अलग करने की काफी कोशिश की परंतु अमृता टस से मस नही

भरतपुर महाराजा कृष्ण सिंह (किशन सिंह)

भरतपुर महराजा कृष्णसिंह (किशन सिंह)  सन् 1925 ई. में पुष्कर में होने वाले जाट-महासभा के अधिवेशन के प्रेसीडेण्ट थे। महाराज को इस बात पर बड़ा अभिमान था कि मैं जाट हूं। वह अपने जातीय गौरव से पूर्ण थे उन्होंने कहा था-“मैं भी एक राजस्थानी निवासी हूं। मेरा दृढ़ निश्चय है कि यदि हम योग्य हों तो कोई शक्ति संसार में ऐसी नहीं है जो हमारा अपमान कर सके। मुझे इस बात का भारी अभिमान है कि मेरा जन्म जाट-क्षत्रिय जाति में हुआ है। हमारी जाति की शूरता के चरित्रों से इतिहास के पन्ने अब तक भरे पड़े हैं। हमारे पूर्वजों ने कर्तव्य-धर्म के नाम पर मरना सीखा और इसी से, बात के पीछे, अब तक हमारा सिर ऊंचा है। मेरे हृदय में किसी भी जाति या धर्म के प्रति द्वेषभाव नहीं है और एक नृपति-धर्म के अनुकूल सबको मैं अपना प्रिय समझता हूं। हमारे पूर्वजों ने जो-जो वचन दिए, प्राणों के जाते-जाते उनका निर्वाह किया था। तवारीख बतलाती है कि हमारे बुजुर्गों ने कौम की बहबूदी और तरक्की के लिए कैसी-कैसी कुर्बानियां की हैं। हमारी तेजस्विता का बखान संसार करता है। मैं विश्वास करता हूं कि शीघ्र ही हमारी जाति की यश-पताका संसार भर में फहराने

जाट वीरांगना रानाबाई के शाहस की वीरगाथा

जाट वीरांगना रानाबाई की शाहस की वीरगाथा सम्राट् अकबर के शासनकाल में वीरांगना रानाबाई थी, जिसका जन्म संवत् 1600 (सन् 1543 ई०) में जोधपुर राज्यान्तर्गत परबतसर परगने में हरनामा (हरनावा) गांव के चौ० जालमसिंह धाना गोत्र के जाट के घर हुआ था। वह हरिभक्त थी। ईश्वर-सेवा और गौ-सेवा ही उसके लिए आनन्ददायक थी। उसने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा आजीवन ब्रह्मचारिणी रहने की कर ली थी, इसलिए उसका विवाह नहीं हुआ। हरनामा गांव के उत्तर में 2 कोस की दूरी पर गाछोलाव नामक विशाल तालाब के पास दिल्ली के सम्राट् अकबर का एक मुसलमान हाकिम 500 घुड़सवारों के साथ रहता था। वह हाकिम बड़ा अन्यायी तथा व्यभिचारी, दुष्ट प्रकृति का था। उसने रानाबाई के यौवन, रंग-रूप की प्रशंसा सुनकर रानाबाई से अपना विवाह करने की ठान ली। उसने चौ० जालमसिंह को अपने पास बुलाकर कहा कि “तुम अपनी बेटी रानाबाई को मुझे दे दो। मैं तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगा।” चौ० जालमसिंह ने उस हाकिम को फ़टकारकर कहा कि - “मेरी लड़की किसी हिन्दू से ही विवाह नहीं करती तो मुसलमान के साथ विवाह करने का तो सवाल ही नहीं उठता।” हाकिम ने जालमसिंह को कैद कर लिया और स्वयं सेना लेकर रा

स्पेन (रोम) में जाट और उनका साम्राज्य

** स्पेन में जाट ** एलरिक/अलारिक वैन रोम की गद्दी पर बैठने वाला पहला जाट था (इनका जन्म 370 ई.) किन्तु वह पुरे रोम पर राज्य नही कर सका । अनेक शाहसी गाथ(जाट) योद्धाओ ने गाल पर आक्रमण किए । जाट प्राचीन शासक लेखक बी एस दहिया पृष्ठ 80 पर लिखते हैं "जाट राजा इयुयिक 466 से 484 ई तक स्पेन व् पुर्तगाल का शासक रहा । उसके शासनकाल में शिवि गोत्री जाटों को इन्हीं के भाई जाटों ने स्पेन से निकलकर रूम सागर पार करके अफ्रीका में चले जाने को विवश किया । (इससे स्पस्ट होता है की शिवि जाट अफ्रीका में भी पहुंचे ) स्पेन पुर्तगाल में राजा इयूरिक का पुतद एलरिक द्वितीय जाटो का आठवां राजा था जो 24 दिसम्बर 484 को अपने पिता का उत्तराधिकारी बना (स्पेन में इसने बहुत अछि कानून व्यवस्था की जो "स्रोत संग्रह" के नाम से प्रसिद्ध है) 711 ई में तरीक की अध्यक्षता में मुसलमानो ने स्पेन में जाटों पर चढ़ाई की । उस समय जाटों का नेता रोडरिक(रूद्र) था ।बह युद्ध में हार गया और बर्बर मुसलमानो का स्पेन और गाल पर अधिकार हो गया । (जाट इतिहास पृ 188-189 लेखक ठा देशराज) इसके बाद फिर स्पेन पर जाटों का राज्य रहा जिसका