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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वीरांगना भंवरी कौर (अमरवीर गोकुला सिंह की बहन)

बृज बाला शहीद भंवरी कौर अमर शहीद गोकुल सिंह की बहिन थी. सामान्यतया यह प्रचार इतिहास में किया गया है कि गोकुलसिंह की बहिन ओर रिश्तेदारों को मुसलमान बना लिया गया था. यह तथ्य ग़लत है जो इस लेख से स्थापित होता है. यह खोजपूर्ण लेख आगरा से प्रकाशित पत्रिका जाट समाज के अगस्त 1995 में छपे लेख पर आधारित है. औरंगजेब की धर्मान्धता पूर्ण नीति सर यदुनाथ सरकार लिखते हैं - "मुसलमानों की धर्मान्धता पूर्ण नीति के फलस्वरूप मथुरा की पवित्र भूमि पर सदैव ही विशेष आघात होते रहे हैं. दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर स्थित होने के कारण, मथुरा की ओर सदैव विशेष ध्यान आकर्षित होता रहा है. वहां के हिन्दुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. सन १६७८ के प्रारम्भ में अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला. अब्दुन्नवी ने पिछले ही वर्ष, गोकुलसिंह के पास एक नई छावनी स्थापित की थी. सभी कार्यवाही का सदर मुकाम यही था. गोकुलसिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया. मुग़ल सैनिकों ने लूटमार से लेकर कि

माता अमृता देवी बेनीवाल जी - एक महान जाटणी (जाट जननी)

माता अमृता देवी बेनीवाल 1787 में राजस्थान के मारवाड (जोधपुर) रियासत पर राजा अभय सिंह राजपूत का राज था। उनका मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी था। उस समय  महराण गढ़ किले में फूल महल नाम का राजभवन का निर्माण किया जा रहा था। महल निर्माण के दौरान लकड़ियों की आवश्यकता पड़ी तो महाराजा अभय सिंह ने मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी को लकडियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया , मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी  की नजर महल से करीब 24 किलोमीटर दूर स्थित गांव खेजडली पर पड़ी। मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी  अपने  सिपाहियों के साथ  1787 में भादवा सुदी 10वीं मंगलवार के दिन  खेजडली गांव पहुंच गए। उन्होंने रामू जाट (खोड़) के व्यक्ति के खेजड़ी के वृक्ष को काटना आरंभ कर दिया। कुल्हाड़ी की आवाज सुनकर रामू खोड की पत्नी अमृता बेनीवाल घर से बाहर आई। उसने बिशनेई धर्म के नियमों का हवाला देते हुए पेड़ काटने से रोका लेकिन सिपाही नहीं माने। इस पर अमृता बेनीवाल पेड़ से चिपक गई और कहा कि पहले मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े होंगे-इसके बाद ही पेड़ कटेगा। राजा के सिपाहियों ने उसे पेड़ से अलग करने की काफी कोशिश की परंतु अमृता टस से मस नही

भरतपुर महाराजा कृष्ण सिंह (किशन सिंह)

भरतपुर महराजा कृष्णसिंह (किशन सिंह)  सन् 1925 ई. में पुष्कर में होने वाले जाट-महासभा के अधिवेशन के प्रेसीडेण्ट थे। महाराज को इस बात पर बड़ा अभिमान था कि मैं जाट हूं। वह अपने जातीय गौरव से पूर्ण थे उन्होंने कहा था-“मैं भी एक राजस्थानी निवासी हूं। मेरा दृढ़ निश्चय है कि यदि हम योग्य हों तो कोई शक्ति संसार में ऐसी नहीं है जो हमारा अपमान कर सके। मुझे इस बात का भारी अभिमान है कि मेरा जन्म जाट-क्षत्रिय जाति में हुआ है। हमारी जाति की शूरता के चरित्रों से इतिहास के पन्ने अब तक भरे पड़े हैं। हमारे पूर्वजों ने कर्तव्य-धर्म के नाम पर मरना सीखा और इसी से, बात के पीछे, अब तक हमारा सिर ऊंचा है। मेरे हृदय में किसी भी जाति या धर्म के प्रति द्वेषभाव नहीं है और एक नृपति-धर्म के अनुकूल सबको मैं अपना प्रिय समझता हूं। हमारे पूर्वजों ने जो-जो वचन दिए, प्राणों के जाते-जाते उनका निर्वाह किया था। तवारीख बतलाती है कि हमारे बुजुर्गों ने कौम की बहबूदी और तरक्की के लिए कैसी-कैसी कुर्बानियां की हैं। हमारी तेजस्विता का बखान संसार करता है। मैं विश्वास करता हूं कि शीघ्र ही हमारी जाति की यश-पताका संसार भर में फहराने