जाट महाराजा और सूफी संतो के बिषय में
जाट बलवान जय भगवान
जाट राजा सूफी संत व महात्माओ के प्रति बहुत उदार रहे हैं ।।
ऐसी बहुत सी कहानी है जिससे इस बात का पता चलता है ।।
महाराजा सूरजमल जिन्होंने मन्दिर मस्जिद दोनों का निर्माण कराया ।। ऐसे ही जाट नरेश भागमल तोमर जी जिन्होंने मन्दिर मस्जिद का निर्माण कराया ।।
इन बातो से पता चलता है की जाट कभी किसी धर्म का गुलाम नही रहा उसे अपनी प्रजा अपने बालक समान रही धर्म जाती से ऊपर पहले अपनी प्रजा रही ।। तो किसी भी जाट नरेश की तुलना किसी धर्म से करना कभी उचित नही होगा ।। और इसीलिए समाज ने जाट को देवता व ठाकुर (भगवान) की उपाधी दी ।।
जाट नरेश भागमल तोमर जी फफूंद के राजा ने एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसपर उनका नाम आज भी खुदा हुआ है ।
इन्होंने संत शाह जाफर बुखारी की दरगाह का निर्माण 1769 इस्बी में कराया जहां भागमल जी का शिलालेख आज भी दरगाह की इमारत में लिखा है ।।
बाबा सहजानन्द जी और सूफी संत शाह जाफर का परिचय
शाह जाफर 1529 ई़ में बाबर की फौज में शामिल रहे सैयद युसुफ शाह जफर बुखारी और उनके भाई जलाल बुखारी फफूंद आये। उक्ते दोनों भाई बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य युद्ध में बाबर की ओर से 1526 ई. में पानीपत की लड़ाई में लड़े थे। ये दोनों भाई बुखारा उजवेकिस्तान से बाबर के साथ आये थे। इसलिए इनको बुखारी बोला जाता है दोनों भाई फफूंद में आकर बस गये थे। शाहजाफर यहीं बसे और सूफी वेश में रहकर इबादत की। उनके छोटे भाई जलाल मकनपुर में जाकर बसे।
जहां पर शाहजाफर इबादत करते थे उन्ही के निकट बाबा सहजानन्द जी भी तपस्या करते थे। दोनों में बड़ी मित्रता थी।1549 ई. में शाह जाफर की मृत्यु फफूंद में हुई। वहीं श्रद्धालुओं द्वारा उनका मजार बना दी और जब संत सहजानन्द जी दिवंगत हुए तो उनकी समाधि भी लगभग 100 मी. दूर स्थापित कर दी गई और भक्त गणों द्वारा दोनों की एक साथ पूजा-अर्चना होने लगी। जिसकी परंपरा आज तक चल रही है। पूजा की विशेषता यह है कि यदि कोई मुस्लिम श्रद्धालु शाह जाफर की मजार पर चादर चढ़ाने आता है तो पहले संत सहजानन्द जी की समाधि पर प्रसाद, चादर चढ़ा देगा तत्पश्चा़त मजार पर चढ़ायेगा।
कुलदीप पिलानिया बाँहपुरिया
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश ।।
Nice post
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