जट महाराजा सलकपाल देव सिंह तोमर

महाराजा सलकपाल देव सिंह तोमर महाराजा सलकपालसिंह तोमर समन्त देश (दिल्ली ) के राजा थे । इन्हे जाटदेव के रूप में भी जाना जाता है । इनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन 961 ईस्वी में महिपालपुर के पास हुआ । इसी दिन इनके पिता गोपालदेव सिंह तोमर का राज्य तिलक समन्त देश के सम्राट के रूप हुआ । इस कारण इनको इनके बाबा सुलक्षणपाल बोलते थे । महराजा सलकपाल देव सिंह ने समाज में के लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम कि जिसको चौधराठ का समाज बोला जाता है । इस सामाजिक व्यवस्था में मुखिया का चुनाव लोगो दुवारा आपसी सहमति से होता है। तोमर जाटों को सलकलाण शाखा इनकी के नाम पर है । जो आज बाघपत क्षेत्र में निवास करती है । सलकपाल सिंह 18 वर्ष 3 माह 15 दिन कि आयु में 979 ईस्वी में समन्त देश कि गद्दी पर बैठे थे उस समय तक तोमर राज्य को अनग प्रदेश या समन्त प्रदेश के रूप में जाना जाता था । दिल्ली कि स्थापना इनके पोते महाराज अनगपाल सिंह में दिल्ली कि स्थापना कि जो इनके भाई जयपाल के पुत्र कवरपाल का लड़का था सलकपाल सिंह ने 979 ईस्वी से 1005 ईस्वी तक 25 वर्ष 10 माह 10 दिन तक शासन किया अपने शासन काल में बहुत से किले और मंदिरो को निर्माण करवाया जिसको बाद में मुस्लिम शासको में नष्ट कर दिया ।मेजर कनिघम , सैय्यद अहमद , खण्डराव जैसे इतिहासकारो ने इनका वर्णन किया है । हरिहर ने अपनी किताब तोमर इतिहास में लिखा है हसन निजामी ने जिस सौरवपाल राजा का वर्णन किया है वो सलकपाल तोमर ही थे राजस्थानी ग्रंथो में इनको रावलु सुलक्षण नाम से पुकारा है । 1005 ईस्वी में 43 वर्ष 1 माह और 25 दिन कि आयु में राज सिहांसन अपने छोटे भाई जयपाल को सौप के खुद वांनप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर समचाना गाव में गढ़ी बना कर रहने लग गये । उस समय तक भारत में मुस्लिम आक्रमण प्रारम्भ हो चुके थे । और यमुना और कृष्णा नदी के बीच के भाग में घना वन था यह स्थान डाकूओ का आश्रय स्थल बन चूका था । अपने भाई के आग्रह पर इन्होने यमुना और कृष्णा के बीच 84 गाव बसा चौधराठ का समाज शुरू किया जिसको आज देश खाप के रूप में जाना जाता है । और इनके वंशज तोमरो को सलकलान तोमरो के नाम से जाना जाता है । समंत देश के तोमर राजा कि मुद्रा काबुल ,लाहोर ,आगरा , ग्वालियर किशनपुर बराल (बाघपत ) से प्राप्त हुई है जिन में एक और श्री समन्त देव और इनका नाम सलकपाल अंकित है किशनपुर बराल गाव में एक विशाल तालाब का पुनः निर्माण चौधराठ कि स्थापना के बाद इनके दुवारा किया गया था । जो कभी कृष्ण और बलराम के युद्ध शिविर का हिस्सा रहा था । रामायण काल में इसको रामताल बोला जाता था इसका नाम आज भी रामताल है किशनपुर बराल में एक बारदारी का निर्माण कर वहाँ पर न्याय पीठ कि स्थापना सलकपाल राजा ने कि थी । बावली गाव कि बनी को गोपीवाला इनके पिता गोपालदेव के नाम पर ही बोला जाता है बड़ौत कि चौधराण पट्टी ,नई बस्ती ,ब्लाक बिल्डिंग के पास सलकपाल का भूमिया हुआ करता था इनकी समाधी बड़ौत में है
कुलदीप पिलानिया बाँहपुरिया
बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश 

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