राजा महेंद्र प्रताप के बारे में कुछ अनछुए पहलू
पाखंडो से आजिज आकर 24 मई 1909 में भौतिकवादी दुनियां मे देश को पहला ITI दिया, जिसमें बुलंदशहर के 5 गांव दान दिये, जिनकी वार्षिक आय 27500 रू थी। 1911 नवम्बर से इन्होंने अछूत कहे जाने वाले मेहनती लोगों को नौकर रखना शुरू कर दिया, जिन्हें जाटव नाम इनका ही ही दिया हुआ हैं। सन 1913 में इन्होंने "निर्बल सेवक पत्र" जिसमें पर्दे का विरोध, स्त्री शिक्षा एवं समानता, छूआछूत को भगाना, सभी मानवों के साथ एक जैसा व्यवहार करना, भारत की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का प्रचार शुरू किया।
2 अक्टूबर सन 1915 के दिन अफ़ग़ानिस्तान के अमीर साहिब ने इनको राजा की उपाधि से नवाज़ा। 1 दिसम्बर 1915 को काबुल में पहली अस्थाई हिंद सरकार की स्थापना की जिसमें इनको भारत का प्रथम राष्ट्रपति, मौलाना बरकत उल्ला खाँ को प्रधानमंत्री तथा मौलाना उद्दैदुल्ला खाँ को ग्रह मंत्री चुना गया। जब अंग्रेज़ सरकार को इस बात का पता चला तो उन्हें देशद्रोही क़रार देकर गिरफ़्तारी के वॉरंट जारी कर दिया। अंग्रेज़ी सरकार से बचते हुए भारत की आज़ादी के लिए दिन रात एक करके एक देश से दूसरे देश अपनी सरकार का संचालन करते हुए विश्व की सबसे लम्बी अज्ञातवास पर रहे। 31 वर्ष 7 मास बाद 1946 में वापस अपनी सरज़मीं पर आए। जर्मनी, हौलैंड, काबुल, तुर्की, अफ़ग़ानिस्तान, जापान आदि देशों में भ्रमण करते हुए सन 1922 में जापान में आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना की थी। बोस को हिटलर से राजा साहब ने मिलवाया था।
वृंदावन पहुँचकर उन्होंने अपना पहला भाषण दिया कि जब एक भारतीय नौजवान इंग्लैंड में जाकर भरी सभा में जनरल डायर को गोलियों से भून सकता है तो अंग्रेज यहाँ कैसे राज कर सकते है, 24 घण्टे में चौधरी छोटूराम की चेतावनी के बाद जिन्ना पंजाब से भाग सकता है तो मुस्लिम लीग पाकिस्तान कैसे बनवा सकती है? राजा साहब ने विभाजन का सख्त विरोध किया था। भारत विभाजित हुआ तो इन्होंने कांग्रेस भी छोड़ दी। 1956 में ही मथुरा से कांग्रेस उम्मीदवार को 26 हज़ार मतों से हराया और संघी अटल बिहारी वाजपेयी की ज़मानत ज़ब्त कराकर चुनाव जीते थे। 29 अप्रैल 1979 को इस महापुरुष ने अपना शरीर त्याग दिया।
भारत के ऐसे महान सपूत को कोटि कोटि नमन!
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