वीरांगना भंवरी कौर (अमरवीर गोकुला सिंह की बहन)

बृज बाला शहीद भंवरी कौर अमर शहीद गोकुल सिंह की बहिन थी. सामान्यतया यह प्रचार इतिहास में किया गया है कि गोकुलसिंह की बहिन ओर रिश्तेदारों को मुसलमान बना लिया गया था. यह तथ्य ग़लत है जो इस लेख से स्थापित होता है. यह खोजपूर्ण लेख आगरा से प्रकाशित पत्रिका जाट समाज के अगस्त 1995 में छपे लेख पर आधारित है.
औरंगजेब की धर्मान्धता पूर्ण नीति
सर यदुनाथ सरकार लिखते हैं - "मुसलमानों की धर्मान्धता पूर्ण नीति के फलस्वरूप मथुरा की पवित्र भूमि पर सदैव ही विशेष आघात होते रहे हैं. दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर स्थित होने के कारण, मथुरा की ओर सदैव विशेष ध्यान आकर्षित होता रहा है. वहां के हिन्दुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. सन १६७८ के प्रारम्भ में अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला. अब्दुन्नवी ने पिछले ही वर्ष, गोकुलसिंह के पास एक नई छावनी स्थापित की थी. सभी कार्यवाही का सदर मुकाम यही था. गोकुलसिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया. मुग़ल सैनिकों ने लूटमार से लेकर किसानों के ढोर-डंगर तक खोलने शुरू कर दिए. बस संघर्ष शुरू हो गया.
तभी औरंगजेब का नया फरमान ९ अप्रेल १६६९ आया - "काफ़िरों के मदरसे और मन्दिर गिरा दिए जाएं". फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गया. कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहर, तोड़-फोड़, मुंड विहीन, अंग विहीन कर हजारों की संख्या में सर्वत्र छितरा दी गयी. सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे . और दिखाई देते थे धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें- उनमें से निकलते हुए साही घुडसवार.
अत्याचारी फौजदार अब्दुन्नवी का अन्त ।।
मई का महिना आ गया और आ गया अत्याचारी फौजदार का अंत भी. अब्दुन्नवी ने सिहोरा नामक गाँव को जा घेरा. गोकुलसिंह भी पास में ही थे. अब्दुन्नवी के सामने जा पहुंचे. मुग़लों पर दुतरफा मार पड़ी. फौजदार गोली प्रहार से मारा गया. बचे खुचे मुग़ल भाग गए. गोकुलसिंह आगे बढ़े और सादाबाद की छावनी को लूटकर आग लगा दी. इसका धुआँ और लपटें इतनी ऊँची उठ गयी कि आगरा और दिल्ली के महलों में झट से दिखाई दे गईं. दिखाई भी क्यों नही देतीं. साम्राज्य के वजीर सादुल्ला खान (शाहजहाँ कालीन) की छावनी का नामोनिशान मिट गया था. मथुरा ही नही, आगरा जिले में से भी शाही झंडे के निशाँ उड़कर आगरा शहर और किले में ढेर हो गए थे. निराश और मृतप्राय हिन्दुओं में जीवन का संचार हुआ. उन्हें दिखाई दिया कि अपराजय मुग़ल-शक्ति के विष-दंत तोड़े जा सकते हैं. उन्हें दिखाई दिया अपनी भावी आशाओं का रखवाला-एक पुनर्स्थापक गोकुलसिंह.
सादाबाद और सिहोरा की हार से बौखलाए सल्तनत का निशाना तिलपत और गोकुला बन गए. अब प्रतिदिन गोकुला से इस अपमान की भरपाई करने की तरकीबें सोचते रहता. तभी मथुरा के तत्कालीन सूबेदार सफ शिखन खान को सूचना मिली कि हरयाली तीजों के त्यौहार पर पूरे बृज प्रदेश में गाँव-गाँव नव वधुएँ, युवतियां, गीत, मल्हार गाने, झूला झूलने एकत्रित होती हैं. गोकुला की बहिन भंवर कौर भी ख़ुद हूर की परी थी, इस मौके पर जरुर आएगी. इसलिए गोकुला से बदला लेने और उसकी बढ़ती प्रसिद्धि को रोकने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा.
भंवर कौर का मुग़ल सैनिकों से मुकाबला
पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अंसार १६६९ के श्रावण मास की हरयाली तीज के दिन शिखन खां ने घुड़सवारों तथा अंगरक्षकों के साथ तिलपत से बाहर गाँव के पास बाग़ को घेर लिया.
भंवर कौर अपनी पूर्ण यौवनावस्था में थी, दायित्व और वीरत्व के संस्कार उसे विरासत में मिले थे. अपने आकर्षक व्यक्तित्व के कारण वह अन्य सहेलियों से सर्वोपरि लग रही थी. गाँव से बाहर बाग़ में झूले पड़े हुए थे और मीठी सुरीली आवाज में सखियाँ मल्हार गाने लगी. वे झोटा दे रही थी और मस्ती में ठिठोली और अठखेलियाँ कर रही थी.
शिखन खान, कल्पना और वासना से बेहद पीड़ित हो रहा था. वह बेकाबू मन को न रोक सका और अनायास ही लड़कियों के झुंड के पास पहुँचा. उसके साथियों ने लड़कियों पर झपट्टा मरकर उन्हें हतास करना चाह परन्तु वीर बालाएँ इन अजूबे वेशधारियों से न तो भयभीत हुई और न भागी. शिखन खान ने जैसे ही भंवर कौर की और कुदृष्टि से हाथ बढ़ाना चाहा तो उस बृज बाला ने कहा - "ठहर जा, गीदड़, कुत्ते, हरामी, तेरी शामत तुझे यहाँ ले आई है. मेरी और हाथ बढ़ने का मतलब बर्रों के छाते में हाथ डालना होगा".
भंवर कौर की दहाड़ से शिखन खां बेहयाई से हंसा और कहा कि "ऐ जाने मन, तू जितनी ऊपर से सुंदर दिखती है उतनी ही अन्दर से गर्म मिजाज मालूम पड़ती है. तू यहाँ इन गवारों के बीच रहने लायक नही है तुझे तो महलों में होना चाहिए".


"बेहूदे, बदतमीज़ तेरी बहन बेटी नहीं है क्या? यदि तेरी बहन बेटी है तो उसे ले आ उसे मैं अपनी भाभी रानी बना लूंगी."
भंवर कौर की गर्जना से शिखन खां और चिढ़ गया. वह आगे कुछ कर पाता इससे पहले ही भंवर कौर ने झूला उतारकर उसकी रस्सी में पटली बाँध कर गोफन की तरह घुमाते हुए शिखन खां की और फेंकी जो कि उसके सर में लगी- इसके लगते ही वह बुरी तरह हड़बड़ा गया.
उसने अपनी अन्य सखियों को इन घुड़सवारों से मुकाबला करने को ललकारा. भंवर कौर और सखियाँ आनन-फानन में पटली और झूले वाली रस्सियों से सुसज्जित हो गयी. मुग़ल सैनिक इन वीरांगनाओं के निश्चय को नहीं जान पाए. भंवर कौर ने दाहिने हाथ से रस्सी घुमाकर एक सैनिक के गले पर फैंक दी. रस्सी गले के चारों और लिपट गयी. भंवर कौर ने जोर से झटका मारा और सैनिक घोड़े से नीचे धड़ाम से आ गिरा. भंवर कौर की दूसरी सखी ने पटली से वार किया. सिपाही अर्धम्रत निढाल हो गया. भंवर कौर ने बिजली जैसी चपलता से सैनिक की तलवार अपने काबू में की और एक ही वार से मुग़ल सैनिक का धड़ और सिर अलग हो गए. यही क्रम चलता रहा. इस तरह कई सिपाही मौत के शिकार हुई. वीरांगनाओं का यह रणचातुर्य देख शिखन खां पहले तो दहल गया किंतु अविलम्ब क्रोधित हो भंवर कौर की और झपटा. भंवर कौर पहले से तैयार थी. शिफन खां ने तलवार से वार किया. भंवर कौर ने पटली आगे कर उसे ढाल का काम लिया. वार बेकार हो गया. भंवर कौर ने विद्युत-वेग से पलट कर वार किया. चालाक शिखन खां स्वयं तो बच गया किंतु उसका घोडा घायल हो गया.
बाग़ के मध्य घमासान होने लगा. वीरांगनाओं ने अबतक कई घुड़सवारों को रस्सी से निचे गिराया और मौत के घाट उतार दिया. खिसियाए सैनिक इन अबलाओं पर करारे प्रहार करने लगे. वीरांगनाएं भी कट-कट कर धरासाई होने लगी. चतुर भंवर कौर ने शिखन खां के घायल घोडे पर एक और वार किया.
चतुर भंवर कौर ने शिखन खां के घायल घोडे पर एक और वार किया. घोडा चित्कार कर उठा और घायल घोड़ा शिखन खां को लेकर भाग खड़ा हुआ. शिखन खां को भागते देख अन्य सैनिकों के पैर भी उखड गए. भागते सैनिकों पर उत्साहित वीरांगनाओं ने तेज और लंबे प्रहार किए. किसी कवि ने ठीक ही कहा है:
अबलाएं करती थी संगर , वे बनी सिंहनी क्षत्राणी
केवल श्रृंगार नहीं सूझा, तलवार धार में था पानी
कितने ही यवनों को काटा,
जैसे हो फसल को काट रहीं
रणचंडी बनकर देखो वे
अरि रक्त को चाट रहीं
भंवर कौर ने भागते हुई दो सैनिकों को धराशाई कर दिया. भंवर कौर अतिउत्साह में थी. अपनी सुरक्षा का ध्यान कम हो गया. तभी एक भागते सैनिक ने बंदूक दागी जो भंवर कौर का सीना चीरती हुई पार कर गयी. बृज वीरांगना भंवर कौर शहीद हो गयी.
इस लड़ाई में 17 मुग़ल सैनिक मारे गए. भंवर कौर सहित 11 बहनें शहीद हुई. गढ़ी तिलपत में समाचार पहुँचा और गाँववासी बाग़ में पहुँच गए. बाग में आतताई मुग़ल सैनिकों और वीरांगनाओं की लाशें छितरी पड़ी थी. हरयाली तीज का त्यौहार शोक में बदल गया. दिवंगत वीरांगनाओं का दाह संस्कार सामूहिक रूप से बाग़ के मध्य में कर दिया गया. प्रति वर्ष हरयाली तीज पर इन शहीद वीरांगनाओं की स्मृति में शहीद मेला लगाने का गाँव-गाँव में निश्चय हुआ. यह परम्परा आज भी बृज क्षेत्र के गांवों में चल रही है.
जय जाटणी
जय जाट कौम
#कुलदीप_पिलानिया_बाँहपुरिया
(जाटिज्म आला जट)

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