इतिहाश का महत्व ( इतिहाश चाहे किसी का हो वो उसका दर्पण होता है जो जानना पहचानना बहुत जरूरी है )


इतिहास का महत्त्व - इतिहास समाज का दर्पण
है। किसी देश अथवा जाति के उत्थान-पतन, मान-
सम्मान, उन्नति-अवनति आदि की पूर्ण व्याख्या
उसके इतिहास को पढ़ने से हमको भलीभांति
विदित हो जाती है। जिस देश या जाति को
नष्ट करना हो तो उसके साहित्य को नष्ट करने से
वह शताब्दियों तक पनप नहीं सकेगी। हमारे देश
भारत के सम्बन्ध में यही बात बिल्कुल सत्य सिद्ध
हुई है। यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि जिस जाति
का जितना ही गौरवपूर्ण इतिहास होगा वह
जाति उतनी ही सजीव होगी। इसी कारण
विजेता जाति पराजित जाति के इतिहास को
या तो बिल्कुल नष्ट करने का प्रयत्न करती है
जैसा कि भारत के मुगल, पठान शासकों ने किया
था अथवा ऐसे ढंग से लिख देती है जिससे उस
जाति को अपने पूर्वजों पर गौरव करने का
उत्साह न रहे। इतिहास का इसी प्रकार का स्वरूप
प्रायः अंग्रेज लेखकों ने भारत के सामने पेश
किया।
इतिहास हमें यह बताता है कि हम कौन थे और
आज क्या हो गए हैं। इससे हम कुछ सीखें और
भविष्य में अपने को सुधारें। वे गलतियां जिनके
कारण हमारा पतन हुआ, फिर न हों, इसका
निरन्तर ध्यान रखें यही सीख हमें इतिहास से
ग्रहण करनी चाहिये। इतिहास ही जातियों को
उन्नति के मार्ग पर ले जाता है। लार्ड मैकाले ने
क्या ही अच्छा कहा है -
“A people which takes no pride in the noble
achievements on remote ancestors will
never achieve anything worthy to be
remembered with pride by remote
descendants.” - Lord Macaulay.
अर्थात् जो जाति अपने पूर्व पुरुषों के अच्छे
कार्यों का अभिमान नहीं करती वह जाति
कोई ऐसे महान् कार्य नहीं कर सकती जो कि
कुछ पीढ़ी बीतने पर उनकी सन्तति द्वारा गौरव
या अभिमान के साथ स्मरण करने योग्य हों। इस
प्रकार इतिहास सत्यता का प्रकाशक और जीवन
का शिक्षक है। “History is the light of truth
and the teacher of life.”
जर्मनी के महान् विद्वान् प्रोफेसर मैक्समूलर भी
लिखते हैं - “A nation that forgets the glory of
its past, loses the mainstay of its national
character.” अर्थात् जो जाति अपने प्राचीन यश
(गौरव) को भूल जाती है वह अपनी जातीयता के
आधार स्तम्भ को खो बैठती है।
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कुलदीप पिलानिया बाँहपुरिया
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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