ऋषिक व तुषार चन्द्रवंशी जाटवंश का इतिहाश (हूणों का आक्रमण; चीन की दीवार )


ऋषिक व् तुषार चन्द्रवँशी जाटवंश का इतिहाश
(चीन की महान दीवार का इतिहाश)
ऋषिक व तुषार चन्द्रवंशी जाटवंश प्राचीनकाल से प्रचलित हैं। बौद्धकाल में इनका संगठन गठवाला कहलाने लगा और मलिक की उपाधि मिलने से गठवाला मलिक कहे जाने लगे। लल्ल ऋषि इनका नेता तथा संगठन करने वाला था। इसी कारण उनका नाम भी साथ लगाया जाता है - जैसे लल्ल, ऋषिक-तुषार मलिक अथवा लल्ल गठवाला मलिक।
चीनी इतिहासों में तुषारों और उनके पड़ौसी ऋषिकों को यूची या यूहेचि लिखा पाया गया है। इसका कारण सम्भवतः यह था कि ऋषिक तुषार दोनों वंशों ने सम्मिलित शक्ति से बल्ख से थियान्शान पर्वत, खोतन, कपिशा और तक्षशिला तक राज्यविस्तार कर लिया था। यह समय 175 ईस्वी पूर्व से 100 ईस्वी पूर्व तक का माना गया है। पं० जयचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक ‘इतिहास प्रवेश’ के प्रथम भाग में पृ० 112-113 पर जो नक्शा दिया है, तदनुसार “ऋषिक तुषार तक्षशिला से शाकल (सियालकोट), मथुरा, अयोध्या और पटना तक राज्य विस्तार करने वाली जाति (जाट) सिद्ध होती है।” इस मत के अनुसार प्राचीन काम्बोज देश हजारों वर्षों तक तुषार देश या तुखारिस्तान कहलाता रहा। जिस समय भारतवर्ष में सम्राट् अशोक (273 से 236 ई० पूर्व) का राज्य था उस समय चीन के ठीक उत्तर में इर्तिश नदी और आमूर नदी के बीच हूण लोग रहते थे। इन हूणों के आक्रमणों से तंग आकर तत्कालीन चीन सम्राट् ने अपने देश की उत्तरी सीमा पर एक विशाल और विस्तृत दीवार बनवाई थी जो कि आज ‘चीन की दीवार’ के नाम से संसार के सात आश्चर्यजनक निर्माणों में से एक है। तब हूणों ने उस तरफ से हटकर ऋषिक तुषारों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। यह समय ईस्वी पूर्व 175-165 के मध्य का था। उधर हूणों ने चीन के पश्चिमी भाग पर चढाइयां प्रारम्भ कर दीं। हूणों को रोकने के लिए चीन के सम्राट् ने ऋषिक तुषारों की सहायता चाही। यह सन्देश लेकर चीन का प्रथम राजदूत ‘चांगकिएन’ चीन से चल पड़ा। परन्तु ऋषिक-तुषारों से मिलने से पहले ही मार्ग में हूणों द्वारा पकड़ा गया और बन्दी बनाया गया। 10 वर्ष हूणों के बन्दीगृह में रहने के बाद यह दूत ऋषिक-तुषारों के दल में पहुंच ही गया जो उस समय चीन के कानसू और काम्बोज के मध्य तारीम नदी के किनारे रहते थे। यह तारीम नदी आज के चीन के प्रान्त सिनकियांग (Sinkiang) में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। चीन के इस सन्देश के मिलने पर ऋषिक तुषारों ने हूणों पर बहुत प्रबल आक्रमण किया और ईस्वी 127 से 119 तक के मध्य में हूणों को परास्त करके मंगोलिया को भगा दिया। इस प्रकार चीन-भारत की मैत्री का यही अवसर प्रथम माना जाता है। ऋषिक-तुषारों की इस प्राचीन आवास भूमि का नाम ‘उपरला हिन्द’ (Upper India) प्रसिद्ध है। उन दिनों इस समूह का धर्म बौद्ध और जीवन युद्धमय था। इन्हीं का प्रमुख पुरुषा ऋषिक-वंशज लल्ल ऋषि था। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 332 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री)।
तुषारों के विषय में यूनानी प्रसिद्ध इतिहासकार स्ट्रैबो (Strabo) के लेख अनुसार बी० एस० दहिया ने जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज पृ० 273 पर लिखा है कि तुषार लोगों ने बैक्ट्रिया (Bactria) प्रदेश पर से यूनानियों के राज्य को नष्ट कर दिया और उनको वहां से बाहर भगा दिया। ये अति प्रसिद्ध थे।
ले० रामसरूप जून ने जाट इतिहास अंग्रेजी पृ० 170 पर लिखा है कि “तुषारों का राज्य गजनी एवं सियालकोट दोनों पर था और इनके बीच का क्षेत्र तुषारस्थान कहलाता था।” यही लेखक जाट इतिहास हिन्दी पृ० 81 पर लिखते हैं कि “कठ और मलिक गणराज्यों ने पंजाब में सिकन्दर की सेना से युद्ध किया था।” परन्तु उस समय इन लोगों की पदवी ‘मलिक’ की नहीं थी जो कि उस आक्रमण के बाद इनको मिली। सम्भवतः ऋषिक-तुषारों ने सिकन्दर से युद्ध किया हो ।।
जय जट्टा
#कुलदीप_पिलानिया_बाँहपुरिया
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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